मेरठ के रहने वाले रमेश जुनेजा (Ramesh Juneja) ने मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव (MR) के तौर पर करियर की शुरुआत की थी. साल 1974 में वे कंपनी की दवाइयों को बेचने के लिए यूपी रोडवेज की बसों से सफर करते थे. फिर एक घटना ने उनका पूरा जीवन बदल दिया और देश की एक बड़ी कंपनी खड़ी कर दी.

अगर दिल में अरमान और कड़ी मेहनत हो तो कुछ भी संभव है. कुछ ऐसा ही कारनामा मेरठ के भाइयों ने कर दिखाया है, जिन्‍होंने एक मामूली नौकरी से आज हजारों करोड़ की कंपनी खड़ी कर डाली. इस कंपनी को बनाने में इन्‍होंने अपनी पूरी ताकत छोंक दी, आलम ये है कि ये कंपनी भारत की चौथी सबसे बड़ी फार्मा कंपनी बन चुकी है और पिछले साल ही इसे मार्केट में लिस्‍ट भी कराया गया. हम बात कर रहे हैं मैनकाइंड (Mankind) फार्मा और उनके फाउंडर्स की.

मेरठ के रहने वाले रमेश जुनेजा (Ramesh Juneja) ने मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव (MR) के तौर पर नौकरी की शुरुआत की थी. साल 1974 में वे कंपनी की दवाईंयों को बेचने के लिए यूपी रोडवेज की बसों से सफर करते थे. वे हर दिन मेरठ से पुरकाजी तक का सफर रोडवेज बसों से किया करते थे. लोगों को दवाई बताने से लेकर डॉक्‍टर्स का घंटों-घंटों तक इंतजार करना पड़ता था. साल 1975 में उन्होंने लूपिन फार्मा ज्वाइंन कर लिया. 8 सालों तक वहां काम करने के बाद उन्होंने 1983 में इस कंपनी से रिजाइन कर दिया.

एक घटना ने बदल दिया जीवन

एमआर के दौरान उन्‍हें इस फील्‍ड के बारे में सबकुछ पता चल चुका था. एक बार जब वह केमिस्‍ट की दुकान पर खड़े होकर उसे अपनी कंपनी की दवाईयों के बारे में बता रहे थे, उसी वक्‍त दुकान पर एक शख्‍स आया. व्‍यक्ति को दवा की जरूरत थी, लेकिन पैसे नहीं थे. मेडिकल का बिल चुकाने के लिए वह अपने साथ चांदी के गहने लेकर आया था. दवा के बदले वह अपने गहने दे रहा था, उसी वक्‍त रमेश जुनेजा ने ठान लिया कि वो ऐसी दवाईयां बनाएंगे जो आम लोगों तक पहुंचे. लोगों के बजट में हो और किसी को गहने नहीं बेचना पड़े. फिर क्‍या था दोस्‍त के साथ मिलकर बेस्टोकेम नाम की एक फार्मा कंपनी खोली, लेकिन वो सफल नहीं हो सके.

भाई के साथ मिलकर खोला बिजनेस

साल 1994 में बेस्टोकम छोड़ने के बाद उन्‍होंने अपने भाई के साथ मिलकर मैनकाइंड फार्मा की शुरुआत की. रमेश पहली बार में असफल रहे, लेकिन बहुत कुछ सीखा. Mankind फार्मा की शुरुआत के साथ ही उन्‍होंने इस कंपनी में 50 लाख रुपये का निवेश किया. इस दौरान उन्‍होंने 25 मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव को अपने साथ जोड़ा. पहले ही साल में कंपनी ने कमाल कर दिया. शुरुआत में ही कंपनी की वैल्‍यूवेशन 4 करोड़ रुपये पर जा पहुंची.

 

कैसे सफल हुई कंपनी?

मैनकाइंड फार्मा के सफल होने के पीछे सस्ती कीमतें और आक्रामक मार्केटिंग और बिक्री पिच जैसे फैक्‍टर थे. कुछ लोग इस कंपनी को रातो-रात सक्‍सेस मानते थे, लेकिन जुनेजा ने हमेशा से अपनी रणनीति साफ रखी और इसकी वैल्‍यूवेशन बढ़ाने पर फोकस रखा. आलम ये है कि इस कंपनी का आज मार्केट कैप 95846 करोड़ रुपये हो चुकी है.

 

इस कंपनी के कुछ फेमस प्रोडक्‍ट्स मैनफोर्स कंडोम, ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव प्रेगा न्यूज और अनवांटेड 72, गैस-ओ-फास्ट (एंटासिड), एक्नेस्टार (स्किन ब्रांड) और मल्टीविटामिन हेल्थओके न्यूज भारत में सबसे ज़्यादा बिकने वाले कंज्यूमर हेल्थ ब्रांड्स में शामिल हैं. पिछले साल मई में मैनकाइंड का IPO की लिस्टिंग हुई थी. तब से स्टॉक में लगभग 74% की वृद्धि हुई है.

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